Tuesday, October 2, 2012


खेल का बाजारीकरण.

एक है खेल (?), टी-२०. पूरी तरह से बाज़ार-नियंत्रित है. इसीलिए न तमीज से खेला जाता है, न तमीज से देखा जाता है. और ये उस क्रिकेट का सबसे छोटा संस्करण है जिसे जेंटिलमेंस गेम कहा जाता है, अर्थात सभ्य लोगों का खेल!
अब बाज़ार हमारे उसूलों/मूल्यों को भी नियंत्रित करने की चेष्टा कर रहा है. जिसे बाज़ार ठीक कहेगा, हमारे बच्चे उसे ही ठीक मानेंगे, जिसे बाज़ार सही कहेगा, उसे ही हमारे बच्चे सही कहेंगे. इस तरह देखा जाये तो बाजार माँ-बाप और गुरु की जगह लेने को उतारू दिख रहा है.
बाज़ार हर काम को व्यापार और हर परिणाम को नफा-नुकसान के तौर पर देखता है. वह अपना नफा-नुकसान केवल पैसे से ही आँकता है, उसके सामाजिक-सांस्कृतिक (दु:)परिणाम से नहीं. इसलिए कहीं ऐसा न हो जाये कि बाज़ार के इस कुचक्र में फंसकर हम भी पैसे के गुणा-भाग में लगे रहें और तबतक काफी देर हो जाये. हम अपने जिन बच्चों को इंसान बनाना चाह रहे थे, वो ऐसे रोबोट बन जाएँ और नोटों से संचालित होने लगें! और तमीज से खेलना और देखना तो दूर, वे तमीज से बात करना भी भूल जाएँ.
तमीज क्या चीज़ है, यह बाज़ार न तय करे, इसके लिए हमें खबरदार होना ज़रूरी है, और समझदार होना भी. क्योंकि ज़िंदगी टी-२० नहीं है, टेस्ट मैच है, जिसमें धैर्य, अनुशासन, मेहनत, समझदारी, साझेदारी.... और तमीज सब ज़रूरी हैं!

Monday, October 1, 2012


राजा उदास था.... मंत्री निराश. रानी को कई दिनों से अनजाना ज्वर था; बड़े-बड़े ख्यातिलब्ध चिकित्सकों को दिखाया, पर रानी की सेहत मे सुधार होता नहीं दिख रहा था. राजवैद्य ने तो कह दिया था- महाराज! चला-चली की बेला है. महारानी को खुश रखिये, इनकी इच्छाएं और ज़रूरत पूरी करिये, और ईश्वर से दुआ कीजिये; इसके अलावा और कोई चारा नहीं बचा है. राजा अपनी प्यारी रानी को खोना नहीं चाहता था, पर विधाता के लिखे के आगे बेबस था. क्या करे?
महारानी को अपने हालात का भान था. वह मरना नहीं चाहती थीं, और राजा को दुखी देखना भी नहीं चाहती थीं. राजा की चिंता हरने के लिए एक दिन महारानी ने राजा से कहा, महाराज! आप चिंता मत करो. मैंने एक सपना देखा है. मैंने देखा है की मैं स्वर्ग में हूँ. अनेक दास-दासियाँ मेरी सेवा में संलग्न हैं. परियां मेरे मनोरंजन के लिए नृत्य कर रही हैं. अप्सराएं मुझे स्वर्ण-पात्रों में अमृतपान करा रही हैं. चारों ओर सुंदरता बिखरी पड़ी है. बड़ा मनोहर दृश्य है. मुझे सैर कराने के लिए चंद्रयान मौजूद है. हर चेहरे पर मुस्कराहट है. महाराज! अब भला ऐसी अलौकिक जगह पर रहकर भला कोई कैसे खुश ना होगा? अतः यदि मैं चली जाऊं, तो आप परेशान मत होना.
महाराज को उपाय सूझा! तुरंत मंत्री से विमर्श किया. एक सपना देखकर महारानी कितनी खुश हैं! उनके बीमार चेहरे पर भी मुस्कान तैरने लगी है. उनकी आँखों मे थोड़ी चकमक आ गयी है. ऐसे कुछ और सपने मिल जाएँ तो तुरंत महारानी की सेवा में प्रस्तुत किये जाएँ. मंत्री ने सोच-विचार किया, बोले- महाराज! ऐसे सपने तो पड़ोसी देश में मिल सकते हैं. वहां का मौसम थोड़ा अलग है, इसलिए वहां ऐसे सपने पलते-बढ़ते हैं. पर हमारे यहाँ लाये जाने पर वे सपने दम तोड़ सकते हैं. फिर क्या किया जाए? राजपुरोहित को बुलाया गया.
राजपुरोहित ने कहा- महाराज! उन सपनों को अभिमंत्रित पात्रों में लाना पड़ेगा. और महारानी के शयन-कक्ष को नए सिरे से सजाना पड़ेगा, नया माहौल बनाना पड़ेगा, जिससे सपने वहां जिंदा रह सकें. राजकीय सज्जाकार को बुलाया गया; महारानी का शयन-कक्ष नवीनीकृत करने का हुक्म दिया गया.
सज्जाकार ने युक्ति लगाई. शयन कक्ष के कमरे चटख रंगों से रंगे गए, अरब के इत्र छिड़के गए. दीवारों पर सुंदर-सुंदर चित्र उकेरे गए. सोने का पलंग मंगवाया गया. स्वर्ण-पात्रों में देश-विदेश से मंगवाए गए फल-फूल रखे गए. महारानी की आँखों पर सोने के फ्रेम वाला चश्मा लगाया गया, जिससे सपने साफ़ दिखाई पड़ें. 
... शेष अगले पोस्ट में.