Friday, February 8, 2013

मैं
और मेरे गाँव का बरगद का वो दरख़्त
पिछले सत्रह सालों से उसे देख रहा हूँ!
लड़कियों पर जवानी छा गयी,
लड़कों में दीवानगी आ गयी,
बुजुर्गों ने डाल दिए हथियार-
बदलाव की धार के आगे.
कुछ सो गए, कुछ जागे.
खपरैल की छतों पर एस्बेस्टस चढ़ गया.
सबकुछ कढ़ गया, बढ़ गया
पर नहीं बदला
तो मेरे गाँव का बरगद का वो दरख़्त!
पिछले सत्रह सालों से उसे देख रहा हूँ!

न वह आँधियों में कभी झुका,
न पतझड़ में कभी विचलित हुआ.
सोचता हूँ काश!
हमारी ज़िंदगी भी ऐसी होती,
अपनी जड़ों के सहारे अपनी जगह पर दृढ.
अपनी ज़मीन से जुड़े होते,
कम-से-कम अपनी सभ्यता तो न खोते!
पिछले सत्रह सालों से उसे देख रहा हूँ!

उसके पहले
मैंने उसका तना देखा था,
उसकी टहनियाँ देखी थीं,
उसके पत्ते देखे थे,
पर नहीं देखा था तो उसकी जड़ें.
होश संभालते ही अगर उसकी जड़े देख लेता,
तो समझ पाता-
खुशहाली का राज़
च्यवनप्राश या लाइफबॉय में नहीं बसता,
बल्कि उस आत्मा में बसता है
जो हरी-भरी रहती है,
शुद्ध-खरी रहती है,
जैसे
हमारे गाँव के बरगद के उस दरख़्त की आत्मा!

-सौरभ श्रीवास्तव 

Tuesday, January 8, 2013

गीदड़ आपू.


गीदड़ बुढा गया... शिकार कर पाने में असमर्थ हो गया. अपनी गुफा में पड़ा-पड़ा भोजन-पानी के जुगाड़ के बारे में सोचने लगा. ठीक से खाना-पानी न मिल पाने के कारण उसकी दशा खराब होने लगी. एक दिन उसने आइना देखा, आँखें धंस गयी थीं और दाढ़ी बढ़ गयी थी... मरियल दीखने लगा था. उसने सोचा, अगर ऐसा ही रहा तो उससे तो जंगल का कोई जानवर डरेगा ही नहीं, शेर अपने शिकार का हिस्सा तो पहले ही देने से मना कर चुका था.. फिर तो वो मर जाएगा.. कल ही तो बिल्ले ने भी कहा था कि तुम बूढ़े लगने लगे हो! बढ़ी हुई दाढ़ी तुम्हारे बुढापे को और बढ़ा रही है. ख्याल आया कि दाढ़ी बनवा ली जाये. सो बाहर निकला, कल्लू नाई से शेविंग कराने. रस्ते में शेर का शावक टकरा गया; बोला, बाबा जी परनाम! थोड़ा आगे बढ़ा, तो हिरन का छौना खड़ा था. वह डरकर भागा नहीं, सादर दंडवत किया- बाबा जी नमस्कार! गीदड़ चौंका, क्या वह इतना जीर्ण-शीर्ण हो गया था कि लोग उसको बूढ़ा समझने लगे थे, उससे डरना छोड़ दिए थे.. अचानक उसकी नज़र  वहां गिरे एक चश्में पर पड़ी... उसने चश्मा उठाकर आँखों पर रखा तो उसे जंगल हरा-हरा दिखने लगा. दूर-पास खड़े तमाम प्राणी छोटे-छोटे दिखने लगे. अब वो खुद को वाकई में बड़ा समझने लगा. गीदड़ खुश हो गया, दाढ़ी बनवाने का ख्याल छोड़ दिया और एक वटवृक्ष के नीचे आसन जमाकर बैठ गया. 

उसको बहुत समय तक ध्यानमग्न देखकर सारे प्राणी अचरज में पड़ गए... उन्हें लगा कि गीदड़ में कोई ऊपरी शक्ति आ गयी है... लोग जुटने लगे, भीड़ बढ़ने लगी. धूप-बत्ती होने लगा, प्रसाद चढ़ने लगा... बाबा गीदड़ दास की जय-जयकार होने लगी... किसी ने सुझाया, इन्हें बाबा मत कहो, इतने बड़े महात्मा के लिए बाबा बहुत छोटा शब्द लगता है.. तय हुआ कि गीदड़ दास को आपू कहा जाएगा, आपू अर्थात आध्यात्मिक पुरुष!

गीदड़ को तो मन-मांगी मुराद मिली, चढावे-पर-चढावा.. छककर खाने लगा और सेवा करवाने लगा.. वक्त-माहौल देखकर प्रवचन भी सुनाने लगा... पंचायत करके छोटे-मोटे फैसले भी सुनाने लगा... अब गीदड़ की मौज हो गयी... खाने को पकवान और सेवा-टहल के लिए अनगिनत दास... और कभी रात-बिरात मौका लग जाए तो दो-एक छोटे-मोटे प्राणियों का भी भोग लगाने लगा...

फिलहाल गीदड़ की दूकान सजी है, उसका बाजार गर्म है... भोले-भाले छोटे-मोटे प्राणियों की संख्या धीरे-धीरे घाट रही है, पर इस ओर अभी किसी का ध्यान गया नहीं है.. जबतक ऐसा है, तबतक गीदड़ आपू की पौ-बारह है!

Tuesday, October 2, 2012


खेल का बाजारीकरण.

एक है खेल (?), टी-२०. पूरी तरह से बाज़ार-नियंत्रित है. इसीलिए न तमीज से खेला जाता है, न तमीज से देखा जाता है. और ये उस क्रिकेट का सबसे छोटा संस्करण है जिसे जेंटिलमेंस गेम कहा जाता है, अर्थात सभ्य लोगों का खेल!
अब बाज़ार हमारे उसूलों/मूल्यों को भी नियंत्रित करने की चेष्टा कर रहा है. जिसे बाज़ार ठीक कहेगा, हमारे बच्चे उसे ही ठीक मानेंगे, जिसे बाज़ार सही कहेगा, उसे ही हमारे बच्चे सही कहेंगे. इस तरह देखा जाये तो बाजार माँ-बाप और गुरु की जगह लेने को उतारू दिख रहा है.
बाज़ार हर काम को व्यापार और हर परिणाम को नफा-नुकसान के तौर पर देखता है. वह अपना नफा-नुकसान केवल पैसे से ही आँकता है, उसके सामाजिक-सांस्कृतिक (दु:)परिणाम से नहीं. इसलिए कहीं ऐसा न हो जाये कि बाज़ार के इस कुचक्र में फंसकर हम भी पैसे के गुणा-भाग में लगे रहें और तबतक काफी देर हो जाये. हम अपने जिन बच्चों को इंसान बनाना चाह रहे थे, वो ऐसे रोबोट बन जाएँ और नोटों से संचालित होने लगें! और तमीज से खेलना और देखना तो दूर, वे तमीज से बात करना भी भूल जाएँ.
तमीज क्या चीज़ है, यह बाज़ार न तय करे, इसके लिए हमें खबरदार होना ज़रूरी है, और समझदार होना भी. क्योंकि ज़िंदगी टी-२० नहीं है, टेस्ट मैच है, जिसमें धैर्य, अनुशासन, मेहनत, समझदारी, साझेदारी.... और तमीज सब ज़रूरी हैं!

Monday, October 1, 2012


राजा उदास था.... मंत्री निराश. रानी को कई दिनों से अनजाना ज्वर था; बड़े-बड़े ख्यातिलब्ध चिकित्सकों को दिखाया, पर रानी की सेहत मे सुधार होता नहीं दिख रहा था. राजवैद्य ने तो कह दिया था- महाराज! चला-चली की बेला है. महारानी को खुश रखिये, इनकी इच्छाएं और ज़रूरत पूरी करिये, और ईश्वर से दुआ कीजिये; इसके अलावा और कोई चारा नहीं बचा है. राजा अपनी प्यारी रानी को खोना नहीं चाहता था, पर विधाता के लिखे के आगे बेबस था. क्या करे?
महारानी को अपने हालात का भान था. वह मरना नहीं चाहती थीं, और राजा को दुखी देखना भी नहीं चाहती थीं. राजा की चिंता हरने के लिए एक दिन महारानी ने राजा से कहा, महाराज! आप चिंता मत करो. मैंने एक सपना देखा है. मैंने देखा है की मैं स्वर्ग में हूँ. अनेक दास-दासियाँ मेरी सेवा में संलग्न हैं. परियां मेरे मनोरंजन के लिए नृत्य कर रही हैं. अप्सराएं मुझे स्वर्ण-पात्रों में अमृतपान करा रही हैं. चारों ओर सुंदरता बिखरी पड़ी है. बड़ा मनोहर दृश्य है. मुझे सैर कराने के लिए चंद्रयान मौजूद है. हर चेहरे पर मुस्कराहट है. महाराज! अब भला ऐसी अलौकिक जगह पर रहकर भला कोई कैसे खुश ना होगा? अतः यदि मैं चली जाऊं, तो आप परेशान मत होना.
महाराज को उपाय सूझा! तुरंत मंत्री से विमर्श किया. एक सपना देखकर महारानी कितनी खुश हैं! उनके बीमार चेहरे पर भी मुस्कान तैरने लगी है. उनकी आँखों मे थोड़ी चकमक आ गयी है. ऐसे कुछ और सपने मिल जाएँ तो तुरंत महारानी की सेवा में प्रस्तुत किये जाएँ. मंत्री ने सोच-विचार किया, बोले- महाराज! ऐसे सपने तो पड़ोसी देश में मिल सकते हैं. वहां का मौसम थोड़ा अलग है, इसलिए वहां ऐसे सपने पलते-बढ़ते हैं. पर हमारे यहाँ लाये जाने पर वे सपने दम तोड़ सकते हैं. फिर क्या किया जाए? राजपुरोहित को बुलाया गया.
राजपुरोहित ने कहा- महाराज! उन सपनों को अभिमंत्रित पात्रों में लाना पड़ेगा. और महारानी के शयन-कक्ष को नए सिरे से सजाना पड़ेगा, नया माहौल बनाना पड़ेगा, जिससे सपने वहां जिंदा रह सकें. राजकीय सज्जाकार को बुलाया गया; महारानी का शयन-कक्ष नवीनीकृत करने का हुक्म दिया गया.
सज्जाकार ने युक्ति लगाई. शयन कक्ष के कमरे चटख रंगों से रंगे गए, अरब के इत्र छिड़के गए. दीवारों पर सुंदर-सुंदर चित्र उकेरे गए. सोने का पलंग मंगवाया गया. स्वर्ण-पात्रों में देश-विदेश से मंगवाए गए फल-फूल रखे गए. महारानी की आँखों पर सोने के फ्रेम वाला चश्मा लगाया गया, जिससे सपने साफ़ दिखाई पड़ें. 
... शेष अगले पोस्ट में.

Tuesday, June 19, 2012

कन्या भ्रूण हत्या एक गंभीर मुद्दा है. इसी मुद्दे को लेकर हमारे इप्टा के कलाकारों ने नुक्कड़ नाटक तैयार किया जिसे अनेक स्थानों पर प्रस्तुत किया गया.

Monday, June 13, 2011

Congress aur Laloo kehte hai Ramdev baba hain, unhe babagiri hi karna chahiye. Kya unke pass in sawalo ka jawab hai?
1- Rabri housewife hai to unhe CM kyo banaya?
2- Nehruji Barrister the to ve PM kyo ban gaye?
3- Satpal Maharj dharmguru hai to rajneeti me kyo aa gaye?
4- Kapil Sibbal lawyer the to minister kyo ban gaye?

Bhrashtachar ke khilaf awaz uthane ke liye kewal Bhartiya hona hi zaroori hai, aur kuchh nahi. Aur kisi aur ko awaz uthane ka jitna haq hai, Ramdev ko bhi utna hi hai.